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गुरुजी के बारे में

गुरुजी के बारे में

सारे तीरथ धाम आपके चरणों में

हे गुरुदेव!! प्रणाम आपके चरणों में।’🙏🏻


सर्वप्रथम परम पूजनीय श्री गुरुजी महाराज के चरण कमलों में भक्त का भावपूर्ण सादर नमन। गुरुजी एक शब्द नहीं, एक सुखद अहसास है जिसका अनुभव केवल वह कर सकते हैं, जिन्होंने श्री गुरुजी को अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया हो। बालाजी दल के संस्थापक और अपने ज्ञान से संगत परिवार को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरुजी महाराज - श्री बलजीत खरब जी हैं।

परम पूज्य गुरुजी श्री बलजीत खरब जी द्वारा संचालित धार्मिक संस्था बालाजी दल को वतर्मान स्वरूप ग्रहण करने में लगभग बीस वर्षों का समय लगा है। संस्था की पौध श्री गुरु जी के पैतृक गाँव ठरु जनपद, सोनीपत (हरियाणा) में वर्ष 2000 में, दिसंबर माह में लग चुकी थी। गुरु जी के पैतृक गाँव एवं निज निवास स्थान पर ही मानसिक, शारीरिक व्याधियों का निराकरण गुरु जी द्वारा कुछ नियमों एवं सात्विकता को धारण करने के पश्चात किया जाता था।

शनै: शनै: श्री गुरुजी की प्रसिद्धि एवं सरलता, लाभार्थियों द्वारा, हरियाणा प्रांत से बाहर जाने लगी। भक्तों के आग्रह एवं अनुरोध पर आपने दिल्ली में संगत परिवार को संबोधित करना प्रारंभ किया। भक्तों की दुविधा को सुविधा में बदलने के लिए आपने दिल्ली में निवास करना भी प्रारंभ किया।

जिस तरह शाख (डाली) के बिना पत्ते नहीं आते हैं ठीक उसी तरह श्री गुरुजी के बिना मनुष्य की सदगति नहीं होती है। अर्थात् गुरुजी का हमारे जीवन में होना आवश्यक है।

“भोजन शरीर की ऊर्जा है, भजन आत्मा की ऊर्जा है”

गुरुजी हम सबको ईश्वर भक्ति के रंग में रंगने के लिए सदैव प्रेरणा देते हैं। वह प्रत्येक सदस्य को हनुमान चालीसा के 21 पाठ सुबह और 21 पाठ शाम को ज्योत जगा कर, करने को कहते हैं। श्री बालाजी महाराज का भजन प्रतिदिन करना है, सुबह - शाम करना है और निरंतर करना है।


‘जैसा खाओगे अन्न, वैसा हो जाएगा मन’

श्री गुरुजी संगत के प्रत्येक व्यक्ति को केवल चार चीजों का परहेज़ करने के लिए कहते हैं। माँस, मदिरा, लहसुन एवं प्याज़ का त्याग। गुरुजी बताते हैं कि इन चारों वस्तुओं का सेवन करने से मनुष्य भक्ति मार्ग से दूर हो जाता है। इसके विपरीत जब मानव शुद्ध एवं सात्विक भोजन ग्रहण करता है तो इसके मन में शुद्ध विचार आते हैं और भगवान के भजन में रुचि बढ़ती है।


तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा’

श्री गुरुजी इस बात को विशेष रूप से संगत को समझाते हैं कि घर में नित्य जो कुछ भी बनता है, उसका सर्वप्रथम ईश्वर को भोग लगाना चाहिए। वे यह भी बताते हैं कि बालाजी महाराज को भोग अर्पण करने से भोजन, प्रसाद बन जाता है।


‘गुरु वचनों को रखना सँभाल के, एक-एक शब्द में गहरा राज़ है ।

जिसने जानी है महिमा गुरुजी की, उसका डूबता न कभी जहाज़ है ।।’

जब बार - बार प्रभु को याद करते हैं तो हमारे मन में सकारात्मक ऊर्जा का समावेश होता है अर्थात् नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं रहता है। रोज़ मन को एकाग्र कर, थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करने से, हमारे आस-पास एक घेरा बन जाएगा, जिससे हम, हमारे जीवन में आने वाली परेशानियों से भयभीत न होकर उसका डटकर सामना कर सकेंगे।